आजादी के सात दशक

आजादी के सात दशकों के बाद भी हमारा स्वास्थ्य तंत्र बीमार नजर आता है
शुरुआत से ही बुनियादी सुविधाओं के अभाव में सरकारी अस्पताल दम तोड़ रही हैं
ऐसे में उनसे अच्छे परिणामों की उम्मीद भला कैसे की जा सकती है
सरकार द्वारा सरकारी अस्पतालों को ज्यादा तवज्जो ना दिया जाना इस बदहाली का कारण तो है ही बुनियादी सुविधाओं को चुस्त-दुरुस्त बनाए रखने में स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही भी बड़ी वजह है
क्योकी सरकारी अस्पतालों में भीड़ होना, बेड और स्ट्रेचर की कमी होना और डॉक्टर व अन्य कर्मचारियों, नर्स, तकनीशियन आदि की कमी होना आम बात है, लेकिन आज भी प्रदेश के अधिकतर लोगों के लिए सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के अलावा कोई चारा है नहीं।
निजी अस्पताल और तथाकथित नर्सिंग होम और मेडिकल रिसर्च सेंटर हर छोटे-बड़े शहरों और कस्बों में हर गली में खुले हैं लेकिन वहां न डॉक्टर हैं न स्टाफ, और किसी भी मरीज की हालत जरा भी बिगड़ने पर वे उन्हें नजदीक के सरकारी अस्पताल में ही भेजने की सलाह देते हैं.
सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों पर बड़ी संख्या में मरीज देखना और संसाधनों की कमी का होना एक बड़ा दबाव है, लेकिन इसके विपरीत यह भी सच है कि मनचाही पोस्टिंग पर सालों साल बने रहने की सुविधा, यदि प्रशासनिक पद पर हों तो सामान और दवाओं की खरीदारी, अधीनस्थ कर्मचारियों की नियुक्ति, तबादला और प्रोन्नति का अधिकार, राजनीतिक दलों के नेताओं और सरकार के अधिकारियों से नजदीकी बढ़ाने के मौके भी उन्हीं को मिलते हैं और समस्याएं जस की तस बनी रहते हैं ।
ब्रिज मोहन सिंह

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