छात्र संघ
हम गर्व के साथ कहते हैं कि भारत को विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र होने का गौरव प्राप्त है लेकिन लोकतंत्र की पहली सीढ़ी को ही हम बाधित करने पर तुले हुए हैं।
छात्र संघ लोकतंत्र की बुनियाद को मजबूत करता है क्योंकि इससे जनता का राजनीतिक प्रशिक्षण सुनिश्चित होता है और नेतृत्व क्षमता विकसित होती है। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज देश के करीब तीन सौ विश्वविद्यालयों और पन्द्रह हजार कॉलेजों में से 80 फीसदी विश्वविद्यालयों में छात्र संघ नहीं है। अनेक राज्यों ने छात्रसंघों के चुनाव पर प्रतिबंध लगा दिए है। यह छात्रों के लोकतांत्रिक अधिकार पर हमला है।
एक तरफ तो आप 18 वर्ष की उम्र के छात्र-युवकों को जन-प्रतिनिधि चुनने हेतु वोट देने का अधिकार देते हैं और वहीं दूसरी ओर छात्र संघ चुनाव पर रोक लगा दी जाती हैं। यह कहां का न्याय है कि देश का छात्र संसद और लोकसभा के लिए जन-प्रतिनिधि चुन सकता है लेकिन अपने कॉलेज में छात्र-प्रतिनिधि नहीं चुन सकता।
छात्र संघ चुनाव के विरोध में सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से आरोप लगाए जाते हैं कि इसमें धनबल और बाहुबल का बोलबाला हो गया है
तथा इससे पढ़ाई का माहौल दूषित होता है। यहां प्रश्न उठता है कि बिहार में लगभग पच्चीस वर्षों से छात्र संघ चुनाव नहीं हुए तो क्या यहां के परिसर हिंसामुक्त हो गए और दिल्ली विश्वविद्यालय जहां प्रतिवर्ष छात्र संघ चुनाव होते हैं, वहां की शिक्षा व्यवस्था ध्वस्त हो गई। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय पिछले दो दसको से प्रत्यक्ष छात्र संघ चुनाव पर रोक लगी है तो क्या यहाँ शांति कायम हो गई है।
सही कहा आपने
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